Menu
blogid : 20235 postid : 817048

और कितनी निर्भया?

कुछ विचार दिल से...
कुछ विचार दिल से...
  • 1 Post
  • 0 Comment

१६ दिसंबर. एक ऐसी तारीख जिसने समूची मानवता को शर्मसार कर दिया. एक ऐसी तारीख जिसे शायद ही कोई भारतीय अपनी याद से मिटा पायेगा. एक ऐसी तारीख जिससे लगा था शायद ये अंत है. पर ये सोचना गलत था. क़ानून बदला पर वो मानसिकता नहीं जिसे बदलने की सबसे ज्यादा जरुरत है. उस जघन्य काण्ड के २ साल बीतने पर भी लड़कियां उतनी ही असुरक्षित है जितनी पहले थी.
२ साल पुरे होने पर फिर तमाम न्यूज़ चैनेलो पर कार्यक्रम दिखाए जायेंगे, अनेक जगहों पर मोमबत्तियां जलायी जाएँगी, तमाम हस्तियां, नेतागण अपने विचार प्रकट करेंगे पर क्या इस सबसे स्थिति बदलेगी?
मुझे कभी ऐसा दिन नहीं मिलता जब समाचारपत्रों में कोई दुष्कर्म या छेड़छाड़ की घटना प्रकाशित न हो. हर घटना पर पीड़िता को नए नाम से नवाज़ा जाता है. निर्भया, वीरा, ब्रेवहार्ट आदि. पर इस सबसे सड़क पर चलने वाली कोई भी लड़की सुरक्षित नहीं होती. मैं भी एक लड़की हूँ. मुझे उस डर का एहसास है जब भीड़भाड़ भरी बस में कई निगाहें घूरती हैं, जब सड़क पर चलते हुए किसी के पीछा करने का आभास होता है. सभी पुरुष गलत नहीं होते परन्तु सही और गलत की पहचान करना संभव नहीं हैं.
निर्भया मामले में जस्टिस वर्मा आयोग ने क़ानून में कुछ बदलाव किये पर इससे कोई फर्क पड़ता नज़र नहीं आता. आरोपी गुनाह करता है. पकड़ा जाता है पर क्या इससे दरिंदगी का शिकार होने वाली युवती कभी ये भुला पाती है की किस तरह उसकी मर्यादा को तार तार कर दिया गया? किस तरह एक हैवानियत के आगे उसके मिन्नतें और चीखें मंद पड़ गयी?
बढ़ती दुष्कर्म की घटनाओं पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं. उन्ही में से कुछ ऐसी भी होती हैं जिसमे लड़की के पहनावे, उसकी उम्र, उसके बाहर निकलने के समय को गलत माना गया. पर मैं पूछना चाहती हूँ की अगर वाकई ये कारण वाजिब हैं तो २-३ साल की मासूम बच्चियां ऐसी घिनोनी घटनाओं का शिकार क्यों होती हैं?
इस दुनिया में बढ़ती ये दुष्कर्म की घटनायों का क्या अंत होगा ये तो मैं भी नहीं जानती. मैं ये भी नहीं जानती की मनुष्य के भेष में घूमने वाले दरिंदो का अंत कैसे होगा. पर एक लड़की होने के नाते मैं उस असुरक्षा के डर को भलीभांति महसूस कर सकती हूँ. हर दिन एक नयी निर्भया को जानकर मन तड़प उठता है. आत्मा चीख उठती है. दिल गुस्से से भर जाता है की क्यों मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ हूँ. कोई भी क़ानून कितनी भी प्रदर्शन हर रोज़ नयी निर्भया बनने से नहीं रोक सकते क्यूंकि जब तक एक मनुष्य के अंदर हैवान है तब तक कोई भी लड़की सुरक्षित नहीं हैं. इसीलिए हमें अपना कर्त्तव्य निभाना होगा. क़ानून का फ़र्ज़ है गुनेहगार को सजा देना और हमारा फ़र्ज़ हैं की हम अपने आसपास और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को साफ़-सुथरी मानसिकता की सीख दें. अक्सर ही हम लड़को को सीखते हैं की लड़के रोते नहीं हैं पर अब ज़रूरत हैं की हम उन्हें सिखाएं की लड़के किसी को रुलाते नहीं हैं. शायद यही एक मार्ग हैं जिसपर चलकर हम और निर्भया बनने से रोक पाने में कामयाब होंगे.

Tags:      

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh